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प्रश्न ६ - नदी कल-कल करती हुई बढ़ती जा रही है |. प्रश्न ७ - हमारी कक्षा के सबसे मेधावी लड़के ने नृत्य किया |. प्रश्न ८ - किस्मत का मारा वह घर हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ANUSWAR AND ANUNASIKTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF VISHESHANTRANSLATE THISPAGE
Unknown ने कहा. hello I would like to say that the worksheet was not very clearly visible..the words were very blurry so please improve the quality of the text in it हमारी हिंदी : जनवरी 2020TRANSLATE THISPAGE
ध्यान रखें, जो अनजान है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं कि वह कैसा है, उसका कभी स्पर्श नहीं करना चाहिए, क्योंकि जिसे ऐसा व्यक्ति स्पर्श कर ले, उसके कीटाणु हमारी हिंदी : WORKSHEET OF SARVANAMTRANSLATE THISPAGE
5. अन्य पुरुष 'यह' और 'वह' तथा संकेतवाचक 'यह' और 'वह' में क्या अंतर है ? 6. निजवाचक सर्वनाम तथा पुरुषवाचक सर्वनाम का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट हमारी हिंदी : REVISION WORKSHEET OF APATHIT …TRANSLATE THIS PAGE Revision worksheet of Apathit gadyansh and padyansh term 1 class 8. Labels: Class 8 Hindi Workheet and Video. नई पोस्ट पुरानी पोस्ट मुखपृष्ठ. हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ALANKARTRANSLATE THISPAGE
पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : KARAK WORKSHEETTRANSLATE THIS PAGE vidisha ने कहा. are you having more exercises like this..please give me.i have my exam.please. 12 मार्च 2019को 2:37 am
हमारी हिंदी : RUDH,YAUGIKAND YOGRUDH SHABD …TRANSLATE THIS PAGE जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से न बने हों और जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-कल, पर हमारी हिंदी : रचना के आधार पर वाक्य पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF PADBANDHTRANSLATE THISPAGE
प्रश्न ६ - नदी कल-कल करती हुई बढ़ती जा रही है |. प्रश्न ७ - हमारी कक्षा के सबसे मेधावी लड़के ने नृत्य किया |. प्रश्न ८ - किस्मत का मारा वह घर हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ANUSWAR AND ANUNASIKTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF VISHESHANTRANSLATE THISPAGE
Unknown ने कहा. hello I would like to say that the worksheet was not very clearly visible..the words were very blurry so please improve the quality of the text in it हमारी हिंदी : जनवरी 2020TRANSLATE THISPAGE
ध्यान रखें, जो अनजान है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं कि वह कैसा है, उसका कभी स्पर्श नहीं करना चाहिए, क्योंकि जिसे ऐसा व्यक्ति स्पर्श कर ले, उसके कीटाणु हमारी हिंदी : WORKSHEET OF SARVANAMTRANSLATE THISPAGE
5. अन्य पुरुष 'यह' और 'वह' तथा संकेतवाचक 'यह' और 'वह' में क्या अंतर है ? 6. निजवाचक सर्वनाम तथा पुरुषवाचक सर्वनाम का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट हमारी हिंदी : REVISION WORKSHEET OF APATHIT …TRANSLATE THIS PAGE Revision worksheet of Apathit gadyansh and padyansh term 1 class 8. Labels: Class 8 Hindi Workheet and Video. नई पोस्ट पुरानी पोस्ट मुखपृष्ठ. हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ALANKARTRANSLATE THISPAGE
पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : KARAK WORKSHEETTRANSLATE THIS PAGE vidisha ने कहा. are you having more exercises like this..please give me.i have my exam.please. 12 मार्च 2019को 2:37 am
हमारी हिंदी : RUDH,YAUGIKAND YOGRUDH SHABD …TRANSLATE THIS PAGE जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से न बने हों और जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-कल, पर हमारी हिंदी प्रथम पद -जब भक्त के हृदय में एक बार प्रभु नाम की रट लग जाए तब वह छूट नहीं सकती। कवि ने भी प्रभु के नाम को अपने अंग-अंग में समा लियाहै
हमारी हिंदी : WORKSHEET OF PADBANDHTRANSLATE THISPAGE
पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF SARVANAMTRANSLATE THISPAGE
5. अन्य पुरुष 'यह' और 'वह' तथा संकेतवाचक 'यह' और 'वह' में क्या अंतर है ? 6. निजवाचक सर्वनाम तथा पुरुषवाचक सर्वनाम का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट हमारी हिंदी : WORKSHEET OF KRIYATRANSLATE THISPAGE
पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : संदेश लेखन / MESSAGE WRITINGTRANSLATE THIS PAGE 3 अक्तूबर 2020 को 6:11 am. Chittaranjan Lohar ने कहा. जकगककवक्क. 9 अक्तूबर 2020 को 9:12 pm. टिप्पणी पोस्ट करें. हमारी हिंदी : SAMAS WORKSHEETTRANSLATE THIS PAGE चन्द्र है शिखर पर जिसके. नीला है कंठ जिसका. महान है जो देव. मीन के सामान आँखों वाली. अंशु है माला जिसकी. गिरि को धारण किया जिसने. विषधर एक हमारी हिंदी : NARA LEKHAN CLASS 9TRANSLATE THISPAGE
उत्तर- क ) सर्वप्रथम सीमा रेखा बनाएँ |. ख ) नारे में लय तथा तुकांत शब्दों का प्रयोग होना चाहिए |. मानो पहली पंक्ति का अंतिम शब्द नानी है तो हमारी हिंदी : WORKSHEET OF MAHATAM API MAHAN …TRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF UPASARG AND PRATYAYTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF KRIYA VISHESHANTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : रचना के आधार पर वाक्य पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF PADBANDHTRANSLATE THISPAGE
प्रश्न ६ - नदी कल-कल करती हुई बढ़ती जा रही है |. प्रश्न ७ - हमारी कक्षा के सबसे मेधावी लड़के ने नृत्य किया |. प्रश्न ८ - किस्मत का मारा वह घर हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ANUSWAR AND ANUNASIKTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF VISHESHANTRANSLATE THISPAGE
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प्रश्न ६ - नदी कल-कल करती हुई बढ़ती जा रही है |. प्रश्न ७ - हमारी कक्षा के सबसे मेधावी लड़के ने नृत्य किया |. प्रश्न ८ - किस्मत का मारा वह घर हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ANUSWAR AND ANUNASIKTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF VISHESHANTRANSLATE THISPAGE
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पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : संदेश लेखन / MESSAGE WRITINGTRANSLATE THIS PAGE 3 अक्तूबर 2020 को 6:11 am. Chittaranjan Lohar ने कहा. जकगककवक्क. 9 अक्तूबर 2020 को 9:12 pm. टिप्पणी पोस्ट करें. हमारी हिंदी : SAMAS WORKSHEETTRANSLATE THIS PAGE चन्द्र है शिखर पर जिसके. नीला है कंठ जिसका. महान है जो देव. मीन के सामान आँखों वाली. अंशु है माला जिसकी. गिरि को धारण किया जिसने. विषधर एक हमारी हिंदी : NARA LEKHAN CLASS 9TRANSLATE THISPAGE
उत्तर- क ) सर्वप्रथम सीमा रेखा बनाएँ |. ख ) नारे में लय तथा तुकांत शब्दों का प्रयोग होना चाहिए |. मानो पहली पंक्ति का अंतिम शब्द नानी है तो हमारी हिंदी : WORKSHEET OF MAHATAM API MAHAN …TRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF UPASARG AND PRATYAYTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF KRIYA VISHESHANTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : रचना के आधार पर वाक्य पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ANUSWAR AND ANUNASIKTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF PADBANDHTRANSLATE THISPAGE
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प्रश्न ६ - नदी कल-कल करती हुई बढ़ती जा रही है |. प्रश्न ७ - हमारी कक्षा के सबसे मेधावी लड़के ने नृत्य किया |. प्रश्न ८ - किस्मत का मारा वह घर हमारी हिंदी : WORKSHEET OF VISHESHANTRANSLATE THISPAGE
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5. अन्य पुरुष 'यह' और 'वह' तथा संकेतवाचक 'यह' और 'वह' में क्या अंतर है ? 6. निजवाचक सर्वनाम तथा पुरुषवाचक सर्वनाम का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ALANKARTRANSLATE THISPAGE
पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : RUDH,YAUGIKAND YOGRUDH SHABD …TRANSLATE THIS PAGE जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से न बने हों और जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-कल, पर हमारी हिंदी : WORKSHEET OF KRIYA VISHESHANTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ASHUDDH VAKYO KA SHODHANTRANSLATE THIS PAGE निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके पुनः लिखें |. 1. पाकिस्तान ने गोले और तोपों से आक्रमण किया।. 2. उसने अनेकों ग्रंथ लिखे।. 3. महाभारत अठारह हमारी हिंदी : 2020TRANSLATE THIS PAGE प्रश्न 5-चिड़िया को किससे बहुत प्यार है? (क) अन्न (ख) जल (ग) पत्थर (घ) लकड़ी. प्रश्न 6- छोटी और मुँहबोली वाली कौन है? (क) चिड़िया (ख) गाय (ग)बिल्ली
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5. अन्य पुरुष 'यह' और 'वह' तथा संकेतवाचक 'यह' और 'वह' में क्या अंतर है ? 6. निजवाचक सर्वनाम तथा पुरुषवाचक सर्वनाम का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट हमारी हिंदी : HINDI WORKSHEET SARVANAM FOR CLASS 3 …TRANSLATE THIS PAGE Hindi worksheet Sarvanam for class 3 and 4. Labels: Class 3 and 4 Worksheet and video. नई पोस्ट पुरानी पोस्ट मुखपृष्ठ. हमारी हिंदी : REVISION WORKSHEET OF APATHIT …TRANSLATE THIS PAGE Revision worksheet of Apathit gadyansh and padyansh term 1 class 8. Labels: Class 8 Hindi Workheet and Video. नई पोस्ट पुरानी पोस्ट मुखपृष्ठ. हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ALANKARTRANSLATE THISPAGE
पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF UPASARG AND PRATYAYTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : NARA LEKHAN CLASS 9TRANSLATE THISPAGE
उत्तर- क ) सर्वप्रथम सीमा रेखा बनाएँ |. ख ) नारे में लय तथा तुकांत शब्दों का प्रयोग होना चाहिए |. मानो पहली पंक्ति का अंतिम शब्द नानी है तो हमारी हिंदी : पद परिचय PAD PARICHAY IN HINDITRANSLATE THIS PAGE पद परिचय pad parichay in hindi. पद परिचय. जैसे हम अपना परिचय देते हैं, ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं, उनका भी परिचय हुआ करताहै
हमारी हिंदी : WORKSHEET OF KRIYA VISHESHANTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : KARAK WORKSHEETTRANSLATE THIS PAGE vidisha ने कहा. are you having more exercises like this..please give me.i have my exam.please. 12 मार्च 2019को 2:37 am
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प्रश्न ५ - तुलसीदास जी ने उनका संकट दूर कर दिया |. प्रश्न ६ - नदी कल-कल करती हुई बढ़ती जा रही है |. प्रश्न ७ - हमारी कक्षा के सबसे मेधावी हमारी हिंदी : रचना के आधार पर वाक्य पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ANUSWAR AND ANUNASIKTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : जनवरी 2020TRANSLATE THISPAGE
ध्यान रखें, जो अनजान है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं कि वह कैसा है, उसका कभी स्पर्श नहीं करना चाहिए, क्योंकि जिसे ऐसा व्यक्ति स्पर्श कर ले, उसके कीटाणु हमारी हिंदी : WORKSHEET OF SARVANAMTRANSLATE THISPAGE
5. अन्य पुरुष 'यह' और 'वह' तथा संकेतवाचक 'यह' और 'वह' में क्या अंतर है ? 6. निजवाचक सर्वनाम तथा पुरुषवाचक सर्वनाम का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट हमारी हिंदी : संदेश लेखन / MESSAGE WRITINGTRANSLATE THIS PAGE 3 अक्तूबर 2020 को 6:11 am. Chittaranjan Lohar ने कहा. जकगककवक्क. 9 अक्तूबर 2020 को 9:12 pm. टिप्पणी पोस्ट करें. हमारी हिंदी : WORKSHEET OF VISHESHANTRANSLATE THISPAGE
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प्रश्न ५ - तुलसीदास जी ने उनका संकट दूर कर दिया |. प्रश्न ६ - नदी कल-कल करती हुई बढ़ती जा रही है |. प्रश्न ७ - हमारी कक्षा के सबसे मेधावी हमारी हिंदी : रचना के आधार पर वाक्य पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ANUSWAR AND ANUNASIKTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : जनवरी 2020TRANSLATE THISPAGE
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5. अन्य पुरुष 'यह' और 'वह' तथा संकेतवाचक 'यह' और 'वह' में क्या अंतर है ? 6. निजवाचक सर्वनाम तथा पुरुषवाचक सर्वनाम का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट हमारी हिंदी : संदेश लेखन / MESSAGE WRITINGTRANSLATE THIS PAGE 3 अक्तूबर 2020 को 6:11 am. Chittaranjan Lohar ने कहा. जकगककवक्क. 9 अक्तूबर 2020 को 9:12 pm. टिप्पणी पोस्ट करें. हमारी हिंदी : WORKSHEET OF VISHESHANTRANSLATE THISPAGE
Unknown ने कहा. hello I would like to say that the worksheet was not very clearly visible..the words were very blurry so please improve the quality of the text in it हमारी हिंदी : WORKSHEET OF ALANKARTRANSLATE THISPAGE
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पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : रचना के आधार पर वाक्य पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF SARVANAMTRANSLATE THISPAGE
5. अन्य पुरुष 'यह' और 'वह' तथा संकेतवाचक 'यह' और 'वह' में क्या अंतर है ? 6. निजवाचक सर्वनाम तथा पुरुषवाचक सर्वनाम का अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट हमारी हिंदी : REVISION WORKSHEET OF APATHIT …TRANSLATE THIS PAGE Revision worksheet of Apathit gadyansh and padyansh term 1 class 8. Labels: Class 8 Hindi Workheet and Video. नई पोस्ट पुरानी पोस्ट मुखपृष्ठ. हमारी हिंदी : WORKSHEET OF KRIYATRANSLATE THISPAGE
पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF MAHATAM API MAHAN …TRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक हमारी हिंदी : WORKSHEET OF SANGYA/संज्ञाTRANSLATE THIS PAGE जिस संज्ञा शब्द से उसकी संपूर्ण जाति का बोध हो उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-मनुष्य, नदी, नगर, पर्वत, पशु, पक्षी, लड़का,कुत्ता
हमारी हिंदी : KARAK WORKSHEETTRANSLATE THIS PAGE vidisha ने कहा. are you having more exercises like this..please give me.i have my exam.please. 12 मार्च 2019को 2:37 am
हमारी हिंदी : WORKSHEET OF KRIYA VISHESHANTRANSLATE THIS PAGE पद परिचय जैसे हम अपना परिचय देते हैं , ठीक उसी प्रकार एक वाक्य में जितने शब्द होते हैं , उनका भी परिचय हुआ करता है। वाक SUNDAY, DECEMBER 15, 2019 WORKSHEET OF KABIR KI SAKHIYAN प्रश्न 1- किस की जाति नहीं पूछनी चाहिए ? प्रश्न 2-किसका ज्ञान पूछनाचाहिए ?
प्रश्न 3- म्यान की कीमत क्यों नहीं होती ? तलवार की कीमत क्यों होती है ? प्रश्न 4 - गाली का जवाब गाली से देने से क्या होता है ? प्रश्न 5 - माला कहाँ घूमतीहै ?
प्रश्न 6 - भगवान का सच्चा स्मरण कैसे होता है ? प्रश्न 7-जब मन दसों दिशाओं में घूम रहा हो तब क्या भगवान का सच्चा स्मरण किया जा सकता है ? प्रश्न 8 - कबीर ने किस की निंदा करने के लिए मना किया है और क्यों?
प्रश्न 9 -इस संसार में किसका कोई दुश्मन नहीं है ? प्रश्न 10- इस संसार में किस पर सभी दया करते हैं ? Posted by Dr. Ajay Mishra at 12:20 AMNo comments:
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THURSDAY, DECEMBER 12, 2019 WORKSHEET OF AKABARI LOTA अकबरी लोटा प्रश्न 1- काशी के ठठेरी बाजार में कौन रहता था? प्रश्न 2 - किराए के रूप में झाऊलाल को कितने रुपए हर महीने मिलतेथे ?
प्रश्न 3 -झाऊलाल से किसने ढाई सौ रुपए की मांग की ? प्रश्न 4- लाला झाऊलाल ने रोब के साथ खड़े होते हुए अपनी पत्नी से क्या वादा किया ? प्रश्न 5- रुपए ना मिलने पर लाला की क्या हालत होती ? प्रश्न 6-लाला झाऊलाल के दोस्त का नाम क्या था ? प्रश्न 7- लोटे की गढ़न कैसीथी ?
प्रश्न 8- लाला ने किस डर से पानी पी लिया ? प्रश्न 9 - बुजुर्गों ने कौन सा नियम नहीं बनाया ? प्रश्न 10- लोटा गिरने में किस आकर्षण शक्ति ने मदद की ? प्रश्न 11- न्यूटन कौन थे ? प्रश्न 12- आँगन में खड़ा हुआ अंग्रेज कैसा दिख रहा था ? प्रश्न 13- अंग्रेज ने अपना मुँख खुला का खुला क्यों छोड़ दिया ? प्रश्न 14- आँगन में आते ही बिलवासी जी ने सबसे पहले क्या कामकिया ?
प्रश्न 15- लाला की आँखों में अगर खाने की शक्ति होती तो वह क्या कर देते ? प्रश्न 16- बिलवासी जी ने लोटे के बारे में कौन सी कहानी गढी ? प्रश्न 17- अंग्रेज की आँख कौड़ी से बढ़कर पकौड़ी क्यों हो गई?
प्रश्न 18- जिस समय अंग्रेज को चोट लगी उस समय वह क्या कर रहाथा ?
प्रश्न 1९- लोटे का कितना मूल्य अंग्रेज द्वारा प्रदान किया गया ? प्रश्न 20- जहाँगिरी अंडा किसने खरीदा था ? प्रश्न 21- जहाँगिरी अंडे की क्या कहानी है ? प्रश्न 22- बिलवासी जी ने ऐसा क्यों कहा कि आपका लोटा अंडे का बाप है । प्रश्न 23 - यदि संदूक में पैसे रखते समय बिलवासी जी की पत्नी जग जाती तो क्या होता ? Posted by Dr. Ajay Mishra at 8:33 AMNo comments:
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Labels: Class 8 Hindi Workheet and Video TUESDAY, DECEMBER 3, 2019ANOKHI KAHANIYA 29
👇 इस कथा से बोध अवश्यलेवे❗⬇
एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया- **मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों..?**
इसका क्या कारण है ? राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये .. अचानक एक वृद्ध खड़े हुये बोले - महाराज आपको यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है.. ☝राजा ने घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार ( गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं.. राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा “तेरे प्रश्न का उत्तर आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं ,वे दे सकते हैं।”
*राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा..* राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था, वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे.. *राजा को महात्मा ने भी डांटते हुए कहा ” मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास समय नहीं है...* आगे आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा.. वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है.. *राजा बड़ा बेचैन हुआ, बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न..* उत्सुकता प्रबल थी.. राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर उस गाँव में पहुंचा.. गाँव में उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही.. *जैसे ही बच्चा पैदा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थितकिया..*
राजा को देखते ही बालक हँसते हुए बोलने लगा .. राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुनलो –
तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई राजकुमार थे.. *एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।* अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली ।हमने उसकी चार बाटी सेंकी.. अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा वहांआ गये..
अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा – *“बेटा ,मैं दस दिन से भूखा हूँ ,अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो , मुझ पर दया करो , जिससे मेरा भी जीवन बच जाय...*
इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले.. **तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा आग ...? चलो भागो यहां से ….।** वे महात्मा फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही.. किन्तु उन भईया ने भी महात्मा से गुस्से में आकरकहा कि..
**बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो क्या मैं अपना मांस नोचकर खाऊंगा ?** भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये.. मुझसे भी बाटी मांगी… किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि **चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखामरुँ …?**
अंतिम आशा लिये वो महात्मा , हे राजन !.. आपके पास भी आये,दया की याचना की.. दया करते हुये ख़ुशी से आपने अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी । बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और बोले.. **तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा ।** बालक ने कहा “इस प्रकार उस घटना के आधार पर हम अपना अपना भोग, भोग रहे हैं... और वो बालक मर गया Posted by Dr. Ajay Mishra at 7:55 AMNo comments:
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THURSDAY, NOVEMBER 28, 2019ANOKHI KAHANIYA 26
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ औरों के हित जो मरता है, औरों के हित जो जीता है उस का हर आँसू रामायण है, प्रत्येक कर्म ही गीताहै...|
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ एक ब्राह्मण देवता दरिद्रता के कारण बहुत दुखी होकर राजा के यहाँ धन याचना करने के लिए चल दिये। कई दिन की यात्रा पार करके वे राजधानी पहुँचे और राजमहल में प्रवेश करने की चेष्टा करने लगे। उस नगर का राजा बहुत चतुर था। वह दृढ़ निश्चयी और सच्चे ब्राह्मणों को ही दान दिया करता था। सुपात्र कुपात्र की परीक्षा के लिए राजमहल के चारों दरवाजों पर उसने समुचित व्यवस्था कररखी थी।
ब्राह्मण देवता ने महल के पहले दरवाजे में प्रवेश किया ही था कि एक वेश्या निकल कर सामने आई। उसने राज महल में प्रवेश करने का कारण ब्राह्मण से पूछा। देवता जी ने उत्तर दिया, धन याचना के लिए राजा के पास जाना चाहते हैं। वेश्या ने कहा इस दरवाजे से आप तब अन्दर जा सकते हैं जब मुझसे रमण कर लें। अन्यथा दूसरे दरवाजे से जाइए। ब्राह्मण को वेश्या की शर्त स्वीकार न हुई, अधर्माचरण करने की अपेक्षा दूसरे द्वार से जाना उन्हें पसंद आया। यहाँ से वे लौट आये और दूसरे दरवाजे पर जाकर प्रवेश करनेलगें।
दो ही कदम भीतर पड़े होंगे कि एक प्रहरी सामने आया। उसने कहा इस दरवाजे से घुसने वालो को पहले माँसाहार करना पड़ता हैं चलिए माँस भोजन तैयार है उसे खाकर आप प्रसन्नतापूर्वक भीतर जा सकते हैं। ब्राह्मण ने माँसाहार करना उचित न समझा, और वहाँ से लौट कर तीसरे दरवाजे में होकर जाने का निश्चय किया। तीसरे दरवाजे में जैसे ही वह ब्राह्मण घुसने लगा वैसे ही मद्य की बोतल और प्याली लेकर पहरेदार सामने आया और कहा लीजिए मद्य पीजिए, और भीतर जाइए, इस दरवाजे से आने वालों को मद्यपान करना ही पड़ता है। ब्राह्मण ने मद्यपान नहीं किया और उलटे पाँव चौथे दरवाजे की ओर चलदिया।
चौथे दरवाजे पर पहुँच कर ब्राह्मण ने देखा कि वहाँ जुआ हो रहा है। जो लोग जुआ खेलते हैं वे ही भीतर घुस पाते हैं। जुआ खेलना भी धर्म विरुद्ध है। ब्राह्मण बड़े सोच विचार में पड़ा, अब किस तरह भीतर प्रवेश हो, चारों दरवाजों पर धर्म विरोधी शर्तें हैं। पैसे की मुझे बहुत जरूरत है। एक ओर धर्म दूसरी ओर धन दोनों का घमासान युद्ध उसके मस्तिष्क में होने लगा। ब्राह्मण जरा सा फिसला, उसने सोचा जुआ छोटा पाप है, इसको थोड़ा सा कर लें तो तनिक सा पाप होगा। मेरे पास मार्ग व्यय से बचा हुआ एक रुपया है, क्यों न इस रुपये से जुआ खेल लूँ और भीतर प्रवेश पाने का अधिकारी होजाऊँ।
विचारों को विश्वास रूप में बदलते देर न लगी। ब्राह्मण जुआ खेलने लगा। एक रुपये के दो हुए, दो के चार, चार के आठ, जीत पर जीत होने लगी। ब्राह्मण राजा के पास जाना भूल गया और दत्त चित्त होकर जुआ खेलने लगा। जीत पर जीत होने लगी। शाम तक हजारों रुपयों का ढेर जमा हो गया। जुआ बन्द हुआ। ब्राह्मण ने रुपयों की गठरी बाँध ली। दिन भर से खाया कुछ न था। भूख जोर से लग रही थी। पास में कोई भोजन की दुकान न थी। ब्राह्मण ने सोचा रात का समय है कौन देखता है चलकर दूसरे दरवाजे पर माँस भोजन मिलता है वही क्यों न खा लिया जाए। स्वादिष्ट भोजन मिलता है और पैसा भी खर्च नहीं होता, दुहरा लाभ है। जरा सा पाप करने में कुछ हर्ज नहीं। ब्राह्मण के पैर तेजी से उधर बढ़ने लगे। भोजन तैयार था, माँस मिश्रित स्वादिष्ट भोजन को खाकर देवता जी संतुष्ट होगये।
अस्वाभाविक भोजन को पचाने के लिये अस्वाभाविक पाचक पदार्थों की जरूरत पड़ती है। गरिष्ठ, तामसी, विकृत भोजन करने वाले अकसर पान, बीड़ी, चूरन, चटनी की शरण लिया करते हैं। देवता जी के पेट में जाकर माँस अपना करतब दिखाने लगा। अब उन्हें मद्यपान की आवश्यकता प्रतीत हुई। आगे के दरवाजे की ओर चले और मद्य की कई प्यालियाँ चढ़ाई। धन का, माँस का, मद्य का, तिहरा नशा उन पर चढ़ रहा था। काँचन के बाद कुच का, सुरा के बाद सुन्दरी का, ध्यान आना स्वाभाविक है। देवता जी पहले दरवाजे पर पहुँचे और वेश्या के यहाँ जा विराजे। वेश्या ने उन्हें संतुष्ट किया और पुरस्कार स्वरूप जुए में जीता हुआ सारा धन लेलिया।
एक पूरा दिन चारों द्वारों पर व्यतीत करके दूसरे दिन प्रातःकाल ब्राह्मण महोदय उठे। वेश्या ने उन्हें घृणा के साथ देखा और शीघ्र घर से निकाल देने के लिए अपने नौकरों को आदेश दिया। उन्हें घसीटकर घर से बाहर कर दिया गया। राजा को सारी सूचना पहुँच चुकी थी। आज वे फिर चारों दरवाजों पर गये और शर्तें पूरी करने के लिए कहने लगे पर किसी ने उन्हें भीतर न घुसने दिया। सब जगह से उन्हें दुत्कार दिया गया। ब्राह्मण दोनों ओर से भ्रष्ट होकर सिर धुन धुन कर पछताने लगे। हम लोग उपरोक्त ब्राह्मण के पतन की निन्दा करेंगे क्योंकि वह “जरा सा” पाप करने में विशेष हानि न समझने की भूल कर बैठा था। हमें विचार करना चाहिए कि कही ऐसी ही गलतियाँ हम भी तो नहीं कर रहे है। किसी पाप को छोटा समझकर उसमें एक बार फँस जाने से फिर छुटकारा पाना कठिन होता है। एक कदम नीचे की ओर गिरने से फिर पतन का प्रवाह तीव्र होता जाता है और अन्त में बड़े से बड़े पापों के करने में भी हिचक नहीं होती। इसलिए आरम्भ से ही सावधानी रखनी चाहिए। छोटे पापों से भी वैसे ही बचना चाहिए जैसे अग्नि की छोटी चिंगारी से सावधान रहते है। "सम्राटों के सम्राट परमात्मा के दरबार में पहुँचकर अनन्त रूपी धन की याचना करने के लिए जीव रूपी ब्राह्मण जाता है। प्रवेश द्वार काम, क्रोध लोभ, मोह के चार पहरेदार बैठे हुए हैं। वे जीव को तरह-तरह से बहकाते हैं और अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यदि जीव उनमें फँस गया तो पूर्व पुण्यों रूपी गाँठ की कमाई भी उसी तरह दे बैठता है जैसे कि ब्राह्मण अपने घर का एक रुपया भी दे बैठा था। जीवन इन्हीं पाप जंजालों में व्यतीत हो जाता है। Posted by Dr. Ajay Mishra at 4:50 AMNo comments:
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Labels: ANOKHI KAHANIYAN WEDNESDAY, NOVEMBER 27, 2019ANOKHI KAHANIYA 25
वक़्त अच्छा हो या बुरा गुजर जाएग एक बडी प्रसिद्ध सुफी कहानी है। एक सम्राट ने अपने सारे बुद्धिमानों को बुलाया और उनसे कहा – मैं कुछ ऐसे सुत्र चाहता हूं, जो छोटा हो, बडे शास्त्र नहीं चाहिए, मुझे फुर्सत भी नहीं बडे शास्त्र पढने की। वह ऐसा सुत्र हो जो एक वचन में पूरा हो जाये और जो हर घडी में काम आये। दूख हो या सुख, जीत हो या हार, जीवन हो या मृत्यु सब में काम आये, तो तुम लोग ऐसा सुत्र खोज लाओ। उन बुद्धिमानों ने बडी मेहनत की, बडा विवाद किया कुछ निष्कर्ष नहीं हो सका। वे आपस में बात कर रहे थे, एक ने कहा- हम बडी मुश्किल में पडे हैं बड़ा विवाद है, संघर्ष है , कोई निष्कर्ष नहीं हो पाय, हमने सुना हैं एक सूफी फकीर गांव के बाहर ठहरा है वह प्रज्ञा को उपलब्ध संबोधी को उपलब्ध व्यक्ति है, क्यों न हम उसी के पास चलें ? वे लोग उस सुफी फकीर के पास पहूंचे उसने एक अंगुठी पहन रखी थी अपनी अंगुली में वह निकालकर सम्राट को दे दी और कहा – इसे पहन लो। इस पत्थर के नीचे एक छोटा सा कागज रखा है, उसमें सुत्र लिखा है, वह मेरे गुरू ने मुझे दिया था, मुझे तो जरूरत भी न पडी इसलिए मैंने अभी तक खोलकर देखा भी नहीं । हमारी मांगे ही हमारे दुःख का कारण हैं उन्होंने एक शर्त रखी थी कि जब कुछ उपाय न रह जायें, सब तरफ से निरूपाय हो जाओं, तब इसे खोलकर पढना, ऐसी कोई घडी न आयी उनकी बडी कृपा है इसलिए मैंने इसे खोलकर पढा नहीं, लेकिन इसमें जरूर कुछ राज होगा आप रख लो। लेकिन शर्त याद रखना इसका वचन दे दो कि जब कोई उपाय न रह जायेगा सब तरफ से निरूपाय असहाय हो जाओंगे तभी अंतिम घडी में इसेखोलना।
क्योंकि यह सुत्र बडा बहुमूल्य है अगर इसे साधारणतः खोला गया तो अर्थहीन होगा। सम्राट ने अंगुठी पहन ली, वर्षो बीत गये कई बार जिज्ञासा भी हुई फिर सोचा कि कही खराब न हो जाए, फिर काफी वर्षो बाद एक युद्ध हुआ जिसमें सम्राट हार गया, और दुश्मन जीत गया। उसके राज्य को हडप लिया | वह सम्राट एक घोडे पर सवार होकर भागा अपनी जान बचाने के लिए राज्य तो गया संघी साथी, दोस्त, परिवार सब छुट गये, दो-चार सैनिक और रक्षक उसके साथ थे वे भी धीरे-धीरे हट गये क्योंकि अब कुछ बचा ही नहीं था तो रक्षा करने का भी कोई सवाल न था। दुष्मन उस सम्राट का पीछा कर रहा था, तो सम्राट एक पहाडी घाटी से होकर भागा जा रहा था। उसके पीछे घोडों की आवाजें आ रही थी टापे सुनाई दे रही थी। प्राण संकट में थे, अचानक उसने पाया कि रास्ता समाप्त हो गया, आगे तो भयंकर गडा है वह लौट भी नही सकता था, एक पल के लिए सम्राट स्तब्ध खडा रह गया कि क्या करें ? फिर अचानक याद आयी, खोली अंगुठी पत्थर हटाया निकाला कागज उसमें एक छोटा सा वचन लिखा था यह भी बीत जायेगा। सुत्र पढते ही उस सम्राट के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी उसके चेहरे पर एक बात का खयाल आया सब तो बीत गया, में सम्राट न रहा, मेरा साम्राज्य गया, सुख बीत गया, जब सुख बीत जाता है तो दुख भी स्थिर नहीं हो सकता। शायद सुत्र ठीक कहता हैं अब करने को कुछ भी नहीं हैं लेकिन सुत्र ने उसके भीतर कोई सोया तार छेंड दिया। कोई साज छेड दिया। यह भी बीत जायेगा ऐसा बोध होते ही जैसे सपना टुट गया। अब वह व्यग्र नहीं, बैचेन नहीं, घबराया हुआ नहीं था। वह बैगया।
संयोग की बात थी, थोडी देर तक तो घोडे की टांप सुनायी देती रहीं फिर टांप बंद हो गयी, शायद सैनिक किसी दूसरे रास्ते पर मूड गये। घना जंगल और बिहड पहाड उन्हें पता नहीं चला कि सम्राट किस तरफ गया है। धीरे-धीरे घोडो की टांप दूर हो गयी, अंगुठी उसने वापस पहन ली। कुछ दिनों बार दोबारा उसने अपने मित्रों को वापस इकठ्ठा कर लिया, फिर उसने वापस अपने दुष्मन पर हमला किया, पुनः जीत हासिल की फिर अपने सिंहासन पर बैठ गया। जब सम्राट अपने सिंहासन पर बैठा तो बडा आनंदित हो रहाथा।
तभी उसे फिर पुनः उस अंगुठी की याद आयी उसने अंगुठी खोली कागज को पढा फिर मुस्कुराया दोबारा सारा आनन्द विजयी का उल्लास, विजयी का दंभ सब विदा हो गया। उसके वजीरों ने पूछा- आप बडे प्रसन्न् थे अब एक दम शांत हो गये क्या हुआ ? सम्राट ने कहा- जब सभी बीत जायेगा तो इस संसार में न तो दूखी होने को कुछ हैं और न ही सुखी होने को कुछ है। तो जो चीज तुम्हें लगती हैं कि बीत जायेगी उसे याद रखना, अगर यह सुत्र पकड में आ जाये, तो और क्या चाहिए ? तुम्हारी पकड ढीली होने लगेगी। तुम धीरे-धीरे अपने को उन सब चीजों से दूर पाने लगोेगे जो चीजें बीत जायेगी क्या अकडना, कैसा गर्व, किस बात के लिए इठलाना, सब बीत जायेगा। यह जवानी बीत जायेगी | Posted by Dr. Ajay Mishra at 6:53 AMNo comments:
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Labels: ANOKHI KAHANIYAN TUESDAY, NOVEMBER 26, 2019ANOKHI KAHANIYA 24
(((( अच्छाई का फल )))).
बात अमेरिका के फिलेडेल्फिया राज्य की है..
एक बार बहुत ही घनी रात में बहुत तेज बारिश हो रही थी. एक बुजुर्ग जोड़ी बारिश में बचने के लिए किसी होटल में एक कमरा ढूँढ़ रहे थे..
रात बहुत हो चुकी थी. और बाहर हालत कोई ख़ास अच्छी नहीं थी. ऐसे में वे एक होटल मेंजब गए.
.
तो बूढ़े आदमी ने कहा, क्या हमें एक कमरा मिल सकता हैं ? मैनेजर को उन्हें भीगा हुआ देख बुरा लगा..
उसने कहा, माफ़ कीजिये, हमारे होटल में एक मीटिंग हैं. और सारे कमरे उस मीटिंग में आये लोगों ने ले लिए है..
पर मैनेजर ये भी जानता था की, आसपास कोई और होटल नहीं है. और इस समय इन्हें बाहर भेजना सुरक्षित नहीं होगा..
उसने आग्रह किया की वे लोग उसके अपने कमरे में ठहर जाए. कमरा ज्यादा बड़ा तो नहीं है. पर आप लोग आराम से सुबह तक वहाँ रह सकते है..
बूढ़े जोड़े को पहले थोड़ी झिझक हुई..
पर जब नौजवान मैनेजर ने उनसे कहा की आप मेरी चिंता मत कीजिये. मैं यहाँ ठीक हूँ, मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी..
तो फोरन वे मान गए और फिर उसने उन्हें अपना कमरा देदिया.
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जब सुबह हुई. और जाते वक़्त बूढ़े आदमी ने बिल की पेमेंट की. तो उसने उस मैनेजर से कहा..
तुम इस छोटे से होटल को चलाते हो पर फिर भी तुमने इतनी उदारता दिखाई. हमारी खातिर की. और साथ ही खुशमिजाजी भी..
तुम बहुत ही अच्छे इंसान हो. तुम्हे तो एक बहुत ही बड़े और आलिशान होटल का मैनेजर होना चाहिए….
शायद… मैं तुम्हारे लिए ऐसा एक होटल बनवाऊं ? उनकी बातें सुनकर मैनेजर के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी. फिर उसने उन दोनों को विदा किया..
इस बात को कुछ साल बीत गए. मैनेजर तो उस किस्से को भूल भी चुका था..
फिर एक दिन उसे एक चिट्टी मिली. जिसमे उस रात का जिक्रथा.
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उस बूढ़े दंपत्ति ने उस मैनेजर को न्यूयोर्क में आमंत्रित किया था..
जब मैनेजर वहाँ गया. और उन दोनों से फिर से मिला. तो उसे बहुत ही ख़ुशी हुई..
फिर उस मैनेजर को लेकर वो बूढ़े व्यक्ति एक बड़ी सी आलिशान बिल्डिंग के सामने ले गए. जो अभी नयी नयी बनी थी. और उससे कहा,.
ये देखो. ये वो होटल है जो मैंने तुम्हारे लिए बनाया हैं. मैनेजर हैरानी से उन्हें देखने लगा, और कहा, आप मजाक कर रहे है..
नहीं मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ, उस व्यक्ति ने एक मुस्कान के साथ कहा..
वो होटल न्यूयाॅर्क का प्रसिद्ध वाल्डोर्फ- एस्टोरिया होटल था..
और वो व्यक्ति अपने समय के अमेरिका के सबसे अमीर लोगों में से एक विलियम वाल्डोर्फ-एस्टर थे..
और वो मैनेजर जॉर्ज सी बोल्ड थे. जो उस आलिशान और दुनिया के सबसे बेहतरीन होटल में शुमार वाल्डोर्फ- एस्टोरिया होटल के पहले मैनेजर बने..
कहानी का आशय सीधा सा है. हमारी अच्छाई से दूसरों के साथ हमारा भी फायदा ही होता है. और ये कहां तक ले जाए, इसका अंदाज़ा भी हम नहीं लगा सकते. Posted by Dr. Ajay Mishra at 7:07 AMNo comments:
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Labels: ANOKHI KAHANIYAN SATURDAY, NOVEMBER 23, 2019ANOKHI KAHANIYA 23
(((((((((( असली पारस )))))))))).
संत नामदेव की पत्नी का नाम राजाई था और परीसा भागवत की पत्नी का नाम था कमला। कमला और राजाई शादी के पहले सहेलियाँ थीं।.
दोनों की शादी हुई तो पड़ोस-पड़ोस में ही आ गयीं। राजाई नामदेव जी जैसे महापुरुष की पत्नी थी और कमला परीसा भागवत जैसे देवी के उपासक की पत्नी थी।.
कमला के पति ने देवी की उपासना करके देवी से पारस माँग लिया और वे बड़े धन-धान्य से सम्पन्न होकर रहने लगे।.
नामदेव जी दर्जी का काम करते थे। वे कीर्तन-भजन करने जाते और पाँच- पन्द्रह दिन के बाद लौटते। अपना दर्जी का काम करके आटे-दाल के पैसे इकट्ठे करते और फिर चले जाते।.
वे अत्यन्त दरिद्रता में जीते थे लेकिन अंदर से बड़े सन्तुष्ट और खुश रहते थे।.
एक दिन नामदेव जी कहीं कीर्तन-भजन के लिए गये तो कमला ने राजाई से कहा कि ‘तुम्हारी गरीबी देखकर मुझे तरस आता है। मेरा पति बाहर गया, तुम यह पारस ले लो, थोड़ा सोना बना लो और अपने घर को धन धान्य से सम्पन्नकर लो।‘
.
राजाई ने पारस लिया और थोड़ा सा सोना बना लिया। संतुष्ट व्यक्ति की माँग भी आवश्यकता की पूर्ति भर होती है। ऐसा नहीं कि दस टन सोना बना ले, एक दो पाव बनाया बस।.
नामदेव जी ने आकर देखा तो घर में बहुत सारा सामान, धन-धान्य…. भरा-भरा घर दीखा। शक्कर, गुड़, घी आदि जो भी घर की आवश्यकता थी वह सारा सामान आ गया था।.
नामदेव जी ने कहाः “इतना सारा वैभव कहाँ से आया ? “ राजाई ने सारी बात बता दी कि “परीसा भागवत ने देवी की उपासना की और देवी ने पारस दिया। वे लोग खूब सोना बनाते हैं और इसीलिए दान भी करते हैं, मजे से रहते हैं। हम दोनों बचपन की सहेलियाँ हैं। मेरा दुःख देखकर उसको दया आ गयी।“.
नामदेव जी ने कहाः “मुझे तुझ पर दया आती है कि सारे पारसों को पारस ईश्वर है, उसको छोड़कर तू एक पत्थर लेकर पगली हो रही है। चल मेरे साथ, उठा ये सामान !”.
नामदेव जी बाहर गरीबों में सब सामान बाँटकर आ गये। घर जैसे पहले था ऐसे ही खाली-खट कर दिया।.
नामदेव जी ने पूछाः “वह पत्थर कहाँ है ? लाओ !” राजाई पारस ले आयी। नामदेव जी ने उसे ले जाकर नदी में फेंक दिया और कहने लगे ‘मेरे विट्ठल, पांडुरंग ! हमें अपनी माया से बचा। इस धन दौलत, सुख सुविधा से बचा, नहीं तो हम तेरा, अंतरात्मा का सुख भूल जायेंगे।‘ – ऐसा कहते कहते वे ध्यान मग्न होगये।
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स्त्रियों के पेट में ऐसी बड़ी बात ज्यादा देर नहीं ठहरती। राजाई ने अपनी सहेली से कहा कि ऐसा-ऐसा हो गया। अब सहेली कमला तो रोने लगी।.
इतने में परीसा भागवत आया, पूछाः “कमला ! क्या हुआ, क्याहुआ ? “
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वह बोलीः “तुम मुझे मार डालोगे ऐसी बात है।“ आखिर परीसा भागवत ने सारा रहस्य समझा तो वह क्रोध से लाल-पीला हो गया।.
बोलाः “कहाँ है नामदेव, कहाँ है ? कहाँ गया मेरा पारस, कहाँ गया ? “ और इधर नामदेव तो नदी के किनारे ध्यानमग्न थे।.
परीसा भागवत वहाँ पहुँचाः “ओ ! ओ भगत जी ! मेरा पारस दीजिये।“.
नामदेवः “पारस तो मैंने डाल दिया उधर (नदी में)। परम पारस तो है अपना आत्मा। यह पारस पत्थर क्या करता है ? मोह, माया, भूत-पिशाच की योनि में भटकाता है। पारस-पारस क्या करते हो भाई ! बैठो और पांडुरंग का दर्शन करो।“.
“मुझे कोई दर्शन-वर्शन नहींकरना।“
.
“हरि हरि बोलो , और आत्मविश्रांति पाओ !!.
“नहीं चाहिए आत्मविश्रान्ति, आप ही पाओ। मेरे जीवन में दरिद्रता है, ऐसा है वैसा है… मुझे मेरा पारस दीजिये।“.
“पारस तो नदी में डालदिया।“
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“नदी में डाल दिया ! नहीं, मुझे मेरा वह पारस दीजिये।“.
“अब क्या करना है….. सच्चा पारस तो तुम्हारी आत्मा ही है। अरे, सत्य आत्मा है….“.
“मैं आपको हाथ जोड़ता हूँ मेरे बाप ! मुझे मेरा पारस दो…. पारस दो…..।“.
“पारस मेरे पास नही है, वह तो मैंने नदी में डाल दिया।“.
“कितने वर्ष साधना की, मंत्र-अनुष्ठान किये, सिद्धि आयी, अंत में सिद्धिस्वरूपा देवी ने मुझे वह पारस दिया है। देवी का दिया हुआ वह मेरा पारस….“.
नामदेव जी तो संत थे, उनको तो वह मार नहीं सकता था। अपने-आपको ही कूटने लगा।.
नामदेव जी बोलेः “अरे क्या पत्थर के टुकड़े के लिए आत्मा का अपमान करता है !”.
‘जय पांडुरंगा !’ कहकर नामदेव जी ने नदीं में डुबकी लगायी और कई पत्थर ला के रख दिये उसके सामने।.
“आपका पारस आप ही देख लो।“.
देखा तो सभी पारस ! “इतने पारस कैसे !”.
“अरे, कैसे-कैसे क्या करते हो, जैसे भी आये हों ! आप ले लो अपना पारस !”.
“ये कैसे पारस, इतने सारे !” नामदेव जी बोलेः “अरे, आप अपना पारस पहचान लो।“.
अब सब पारस एक जैसे, जैसे रूपये-रूपये के सिक्के सब एक जैसे। आपने मुझे एक सिक्का दिया, मैंने फेंक दिया और मैं वैसे सौ सिक्के ला के रख दूँ और बोलूँ कि आप अपना सिक्का खोज लो तो क्या आप खोज पाओगे ?.
उसने एक पारस उठाकर लोहे से छुआया तो वह सोना बन गया। लोहे की जिस वस्तु को लगाये वह सोना !.
“ओ मेरी पांडुरंग माऊली (माँ) ! क्या आपकी लीला है ! हम समझ रहे थे कि नामदेव दरिद्र हैं। बाप रे ! हम ही दरिद्र हैं। नामदेव तो कितने वैभवशाली हैं। नहीं चाहिए पारस, नहीं चाहिए, फेंक दो। ओ पांडुरंग !”.
परीसा भागवत ने सारे-के-सारे पारस नदी में फेंक दिये और परमात्म- पारस में ध्यान मग्न हो गये।.
ईश्वर जिस ध्यान में हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश जिस ध्यान में हैं, तुम वहाँ पहुँच सकते हो। अपनी महिमा में लग जाओ। आपका समय कितना कीमती है और आप कौन से कूड़-कपट जैसी क्रिया-कलापों में उलझ रहेहो !
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अभी आप बन्धन में हो, मौत कभी भी आकर आपको ले जा सकती है और भी किसी के गर्भ में ढकेल सकती है। गर्भ न मिले तो नाली में बहने को आप मजबूरहोंगे।
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चाहे आपके पास कितने भी प्रमाण पत्र हों, कुछ भी हो, आपके आत्मवैभव के आगे यह दुनिया कोई कीमत नहीं रखती। "जब मिला आत्म हीरा, जग हो गया सवा कसीरा।" ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Posted by Dr. Ajay Mishra at 10:17 PMNo comments:
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Labels: ANOKHI KAHANIYANANOKHI KAHANIYA 22
(((( सकटू चोर और कृष्ण )))).
प्राचीन काल में एक चोर था जिसका नाम ‘सकटू’ था । वह अपने शहर का नामी चोर था ।.
प्रतिदिन चोरी करना उसकी आदत बन गई थी । जब तक वह रात को किसी के घर में कूदकर चोरी न कर लाता, उसे रात-भर नींद नहीं आती थी । भले ही चोरी में उसके हाथ दुअन्नीआती ।
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एक रात सबद चोर अपने नित्यकर्म के लिए शहर की अंधेरी गलियों में घूम रहा था उसे उचित स्थान और अवसर की खोज थी ।.
उसी शहर में एक धनी व्यक्ति के यहा रात्रि जागरण का कार्यक्रम हो रहा था जिसमें वाद्य यंत्रों की सुरीली धुन के साथ भगवन्नाम का वर्णन किया जा रहा था ।.
गायक जो भी था निश्चय ही सुरीले कठ का स्वामी तो था ही अच्छा भगवद्भक्त भी था । वह दो पंक्तियां गाने के बाद ईश्वर की महिमा का ऐसा वर्णन करता कि सुनने वाले मुग्ध हो जाते ।.
सकटू चोर भी भटकता हुआ उस घर में आ गया जहाँ प्रागण में विशाल भीड़ के समक्ष गायक ने भगवन्नाम की स्वरलहरी छेड़ रखी थी ।.
सकटू का मस्तिष्क क्रियाशील हो गया । उसके विवेक में यह बात आ गई कि प्रांगण में जैसा रस बरस रहा था उसे सुनने के लिए निश्चय ही घर के सभी सदस्य वहीं उपस्थित होंगे थे और घर खाली पड़ा होगा ।.
ऐसा सुअवसर सबद भला क्यों गवांने वाला था ? वह तत्काल भवन के पिछवाड़े गया और रस्सी डालकर घर में प्रवेश कर गया ।.
उसका सोचना सही निकला । घर निर्जन था । सकटू चोर धन-दौलत छूने में जुट गया ।.
अंधकार होने की वजह से उसे कुछ नहीं मिल पा रहा था तो वह एक खिड़की को जरा खोलने के इरादे से खिड़की के पास पहुंचा । उसने खिड़की जरा खोली तो थमक गया ।.
अभी-अभी गायक ने रत्न-मणि-माणिक्य की चर्चा की थी । वह ध्यान से सुननेलगा ।
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”प्रात काल होने पर ग्वालबाल कृष्ण और बलदाऊ को खेलने के लिए बुलाने आ जाते हैं ।” गायक कह रहा था :.
”तब तक माता यशोदा अपने दोनों पुत्रों को नहला चुकी थीं । अब वे कृष्ण और बलराम को गहनों से सजा रही थीं । करोड़ों रुपए के गहने ।.
मुकुट में झिलमिलाते हीरे बाजूबद में दमकते हीरे गलहार में मणियां जिससे प्रकाश किरणें फूट रही थीं । कानों में स्वर्ण के बड़े-बड़े झिलमिलाते कुंडल ।.
कितने सुंदर लग रहे थे दोनों ! यह वृंदावन की सबसे मनोहर झांकी है । तत्पश्चात स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित कृष्ण-बलराम गौ चराने वन की तरफ चल पड़ते हैं।”
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सकटू चोर ने जब यह सुना तो उसके दिमाग में खलबली मच गई । ‘मैं भी निरा मूरख हूं । थोड़े से धन-माल के लिए रातों को मारा-मारा फिरता हूं ।.
जबकि यह पंडित बता रहा है कि दो बच्चे अरबों के गहने पहनकर जगंल में गाय चराने जाते हैं ।.
इससे उनका पता पूछ लेता हूँ और जंगल में जा दबोचता हूं । बच्चे ही तो हैं । मेरा रूप देखकर ही भयभीत हो जाएंगे वरना एक-एक थप्पड़ जड़ दूंगा तो गहने उतारने ही पडेंगे ।’ सकटू सोच रहा था ।.
अब सकटू को उस घर से कोई मोह नहीं रहा और वह वहां से निकलकर वापस कार्यक्रम में आ बैठा ।.
अब उसे कार्यक्रम के समाप्त होने की प्रतीक्षा थी । अर्धरात्रि बीत जाने पर कार्यक्रम समाप्त हुआ तो प्रसाद वितरण हुआ ।.
सकटू ने भी प्रसाद लिया और बाहर गली में आ खड़ा हुआ । काफी देर पश्चात उसे वह गायक पंडित अकेला आता नजर आया । उसका चित्त प्रसन्न हो उठा ।.
पंडित उसके पास से गुजर गया तो सकटू उसके पीछे लग गया । एक निर्जन स्थान देखकर सकटू ने पंडित की बाह पकडू ली ।.
”तनिक ठहर जाओ पंडितजी महाराज!” सकटू बोला: ”लपके कहा जाते हो ? हम भी तो तुम्हारे पीछे हैं काम छोड़कर ।”.
”क…क…कौन हो तुम ?” पंडित जी भयभीत हो गए ।.
”मैं सकटू चोर हूं । नाम तो अवश्य ही सुना होगा ?”.
”ममुझसे क्या चाहते हो भाई ! मैं तो निर्धन ब्राह्मण हूं।”
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”महाराज! आप अपनी मूर्खता से निर्धन हैं अन्यथा आपसे बड़ा धनवान कौन होता । आप तो ऐसे खजाने के बारे में जानते हैं जो करोडों से भी ज्यादा है ।”.
पंडित जी कुछ भी नहीं समझे । ”अब आप मुझे उन दोनों बालकों का पता बताइए महाराज! जो इतने रत्न जड़ित स्वर्ण आभूषण पहनकर गौ चराने वन में जाते हैं ।.
मैं उनसे गहने छीनकर लाऊंगा और निश्चय जानिए आपको भी मालामाल कर दूंगा ।”.
पंडित जी पहले तो अचकचाए फिर उसकी मूर्खता पर मन-ही-मन हंस पड़े ।.
”अच्छा वे बालक ! उनका पता जानना चाहते हो ? भाई, वे तो बड़ी दूर रहते हैं ।”.
“कोई बात नहीं । मैं चला जाऊंगा । आप बस मुझे उनका पता और उनके पास के धन-माल को सविस्तार बता दीजिए । उनके गहने कितने के होंगे ?”.
”उन गहनों का मूल्य कोई नहीं आक सकता । वे तो अनमोल हैं । उनके गहनों में एक कौस्तुभ मणि है जो अकेली संसार की समस्त सम्पदा के बराबर है ।”.
”अच्छा !” चोर के नेत्र आश्चर्य से फैले : ”इतनी बहुमूल्य मणि !”.
”हां भाई ! उस मणि जैसा रत्न तो पृथ्वी पर दूसरा है ही नहीं । वह मणि जहां होती है वहाँ अंधकार नहीं रह सकता।”
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”महाराज ! अब मुझसे धैर्य नहीं हो रहा । मुझे जल्दी उन बालकों का पता और उनके नाम बताओ । नाम जानना भी आवश्यक है । नाम से ढूंढने में जरा सरलता भी रहेगी ।” सकटू व्यग्रता से बोला ।.
”नाम तो उनके कृष्ण और बलराम हैं ।”.
“किरशन और बल्लाराम !”.
”तुम निपट वजमूर्ख हो ! अच्छा ऐसा करो नंदलाल याद रखो । यह भी नहीं रख सकते तो सांवरिया याद रखी ।”.
”सांवरिया ! यह अच्छा है । रटता जाऊंगा । याद हो जाएगा । अब सुगम मार्ग बताओ जिससे जल्दी पहुंच सकुं ।”.
”वृंदावन चले जाओ । वन में कदम्ब का पेड़ ढूंढ लेना । सांवरिया वहीं बांसुरी बजाता है । हो सकता है तुम्हें मिल जाए ।”.
”मिलेगा कैसे नहीं ! अच्छा अब चलता हूँ । लौटकर आपका हिस्सा आपको अवश्य देकर जाऊंगा । प्रणाम पंडित जी !”.
”प्रणाम !” पंडित जी ने चैन की सांस ली । पीछा छूटा निपट मूर्ख से । अब भटकेगा वन-वन ‘सांवरिया-सांवरिया’ रटताहुआ ।
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सकटू वहां से चल दिया । मन-ही-मन वो ‘सांवरिया’ की रट लगाए हुए था । वह सीधा वृंदावन के मार्ग पर चल पड़ा । न उसे भूख सता रही थी और न ही प्यास लग रही थी ।.
वह नहीं चाहता था कि खाने-पीने के चक्कर में वह उस बालक का नाम भूल जाए ।.
इसी धुन में चलता हुआ गिरता-पड़ता सांवरिया रटता वह वृंदावन के मनोहारी वन में पहुंच गया ।.
उसे वन में प्रवेश करते ही कदम्ब का वृक्ष दिखाई पड़ गया तो उसकी समस्त थकान दूर हो गई । अब वह अपने लक्ष्य के बिल्कुल समीप जो था !.
चूंकि रात्रि थी इसलिए अब तो प्रात: काल में ही वे बालक गाय चराने आते । उसे सारी रात्रि प्रतीक्षा करनी हीहोगी ।
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वह वहां पर ही बैठा-बैठा सांवरिया रटता रहा और भोर की प्रतीक्षा करने लगा । प्रात: हुई तो पूर्व दिशा से सूर्य की लालिमा पृथ्वी परपड़ी ।
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बड़ा ही मनोहारी प्रकाश था । सकटू के हृदय में व्यग्रता घर किए थी वह कम-से-कम पचास बार पेड़ से कूदा और फिर चढ़ा । सूर्य देव गरमाने लगे थे । उसी अनुपात में सकट का हृदय भी व्याकुल हो रहा था ।.
सच बात तो यह है कि ईश्वर को पाने के लिए इसी व्याकुलता की जरूरत होती है । ईश्वर पूजा-पाठ करने से नहीं मिलते उपवास-दान करने से भी उन्हे पाना मुश्किल है ।.
उन्हें पाने के लिए तो बस उनके दर्शन की तीव्रतम् अभिलाषा मन में होनी चाहिए । भोले सकटू के मन में प्रभु-दर्शन की वह अभिलाषा उत्पन्न हो गई थी ।.
भाव के भूखे दीनानाथ को इससे क्या मतलब था वह कि कौन था क्या करता था उन्होंने तो सकटू के भाव को परखा और खुद उससे मिलने चल पड़े ।.
अंतत: उसे एक दिशा में दूर कहीं बांसुरी की स्वर लहरी सुनाई दी । वह वृक्ष से नीचे कूद आया । बांसुरी की आवाज प्रतिपल करीब आती जा रही थी।
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उस स्वर लहरी में न जाने कैसा जादू था कि सबद को अपने मनो-मस्तिष्क लहराते प्रतीत हुए ।.
एक अद्भुत नशा उसके विवेक से टकरा रहा था । वह अपनी सुध-बुध खो बैठा और वहीं मूर्च्छित हो गया ।.
जिस बांसुरी की धुन सुनकर कभी ब्रह्मा भी मोहित हो गए थे भला उस धुन से सकटू मदहोश क्यों नहीं हो जाता ।.
उसे चेत हुआ तो उछलकर खड़ा हुआ । अब उसे जगल में एक दिव्य प्रकाश फैला नजर आया । दूर धूल उड़ाती गाए नजर आईं।
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व्याकुल होकर वह दौड़कर उधर लपका तो गायों से बहुत पीछे उसे उस मनोहर प्रकाश की छटा बिखेरते वे मुरली मनोहर दाऊ के साथ नजर आए ।.
”ओ सांवरिया ! तनिक ठहर तो लाला !” उसने उच्च स्वर में पुकारा ।.
दोनों बालक मुड़े तो सकटू सम्मोहित हो गया ।.
‘अहा कितने सुंदर मुख है इन बालकों के !’ उसका हृदय कह उठा : ‘आखों में ! कितनी सुलभता है ! इतने सुंदर और भोले बालक तो मैंने कहीं नहीं देखे ।.
कैसे निर्दयी माता-पिता हैं इनके जो ऐसे सुकुमार बालकों को वन में गाय चराने भेज देते हैं । ऐसी मनोहारी छवि ! इन्हें तो देखते रहने को जी चाहता है ।’.
‘मैं इनसे गहने कैसे छीनूंगा । मेरा तो हृदय ही फट जाएगा परंतु मैं इतनी दूर आया हूं गहने तो छीनूंगा ।.
पंडित से कौल करके आया है मैं तो चोर हूं मुझे इनसे मोह क्यों हो रहा है ? मुझे तो गहने लेने हैं ।’.
”अरे लाला भागे कहां जा रहे हो ? मैं कितनी मुसीबत भुगतकर यहां आया हूं, कुछपता है ?
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सकटू चोर है मेरा नाम । सुना ही होगा । अब अपने सब गहने उतारो और चुपचाप घर चले जाओ ।” सकटू ने घुड़ककर कहा ।.
”हम अपने गहने तुम्हें क्यों दें ?” सांवला बालक मंद मुस्कान से बोला ।.
”देते हो या कसकर थप्पड़ जमाऊं” चोर ने आखें निकालीं।
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”नहीं देंगे ।”.
”अच्छा ! तो मुझे तुम दोनों की पीठ तोड़नी पड़ेगी ”.
”अरे बाप रे ! कोई बचाओ । बाबा अरे ओ बाबा ! बचाओ !”.
चोर ने झपटकर सांवरिया का मुंह दबा लिया । जैसे बिजली चमक उठी । उस स्पर्श ने सकटू के अंतर तक बिजली कौंधा दी । वह जैसे पाषाण में बदल गया ।.
अंतर में अभी भी कहीं तार झंकृत हो रहे थे । और सबद चोर को जाने क्या हुआ वह रो पड़ा ।.
”अरे तुम कौन हो ? क्यों तुम्हारे स्पर्श से मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं बहुत हल्का हो गया हूं ?.
मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मैं किसी अलौकिक आनंद के सागर में डूब रहा हूं । तुम्हारी मुग्ध करने वाली छवि मुझे मेरे उद्देश्य से भटका रही है । तुम निश्चय ही नर रूप में कोई देव हो ।”.
”अरे नहीं बाबा !” सांवरिया ने कहा : ” हम तो साधारण बालक हैं । हम तो नंदराम के बेटेहैं ।”
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”जो भी हो । अब तुम जाओ । अब मैं तुम्हारे गहने नहीं लूगा । अब मेरे हृदय में कोई कामना नहीं रही ।.
बस तुम एक बार अपनी छोटी सुदर हथेलियों को चूम लेने दो । मैं पूर्ण तृप्त हो जाऊंगा ।.
अब मैं कहीं जाने वाला नहीं । यहीं इसी वृक्ष के नीचे रहूँगा ताकि प्रतिदिन तुम्हारी सलोनी सूरत निहारसकूं।
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तुम प्रतिदिन कुछ पल के लिए मुझे अपने दर्शनों से कृतार्थ करते रहना । जिस दिन तुमने दर्शन नहीं दिए मैं उसी दिन व्याकुल होकर प्राण त्याग दूंगा ।”.
”और यदि हम तुम्हें अपने गहने दे दें तब ?”.
”गहने ! गहनों का अब मैं क्या करूगा । नहीं मुझे तुम्हारे दर्शनों के अलावा किसी सुख की कामना नहीं है ।”.
”फिर उस पंडित को क्या मुह दिखाओगे जिससे कहकर आए हो कि तुम निश्चय ही उसे मालामाल कर दोगे ?”.
”अरे वाह! तुम्हें कैसे मालूम ?” चोर चकित हो गया ।.
”हमें सब मालूम है । लो ये गहने ले जाओ अन्यथा वह पंडित तुम्हारी हंसी उड़ाएगा कि तुम दो छोटे बालकों से गहने न ला सके ।”.
”बात तो तुम्हारी ठीक है, परंतु तुम्हारे माता-पिता तुम पर गहनों के लिए क्रोधित नहीं होगे ?”.
”नहीं होंगे । हमारे पास बहुत गहने हैं । तुम फिर आना । हम तुम्हें और भी गहने देंगे ।” श्रीकृष्ण ने अपने गहने उतारे ।.
”फिर मैं ऐसा करता हूँ कि तुम्हारे गहने ले जाकर उस पंडित को दिखाता हूं । फिर आकर तुम्हारे गहने लौटा दूंगा । इस तरह मेरी भी बात रह जाएगी और तुम्हारे गहने भी तुम्हें मिल जाएंगे ।.
मैं तो बस तुम्हारी मनमोहिनी छवि देखकर ही जीवित रह सकता हूं । इन गहनों से मेरा जीवन नहीं चलेगा ।”.
”ठीक है । जैसा तुम्हें उचित लगे ।” श्रीकृष्ण ने कहा और दोनों ने अपने गहने उतारकर पोटली में बाँधकर उसे दे दिए ।.
सकटू वहां से चल दिया इस उत्कठा में कि उसे शीघ्र वापस भी आना है बिना कहीं विश्राम किए उस पंडित के पास पहुचा ।.
”महाराज !” वह पंडित से बोला: ”आप बड़े निर्दयी हैं । ऐसे सुकुमार बालकों के गहने लूटने भेज दिया ।.
अरे मेरा हृदय उन्हें देखते ही बदल गया । कैसी मनोहारी छवि थी उनकी ! मैं तो उनका दास बन गया ! कितने दयालु भी हैं ! मैं नहीं चाहता था फिर भी अपने गहने मुझे दे दिए ।.
यह देखिए कितने सारे गहने हैं । यह रही वह अनमोल कौस्तुभ मणि ! यह रहा रत्नजडित बाजूबंद । देख-भर लो दूंगा नहीं । वापस करने का वचन दे आया हूं ।”.
पंडित तो खुली पोटली से जगमगाते रत्न आभूषण को देखकर ही चक्कर खा गया । यह कैसा चमत्कार था !.
वह शठ पापी चोर कैसे उस दिव्य मूर्ति के दर्शन पा सका जिसके लिए बड़े-बड़े साधु योगी जगत को त्यागकर दिन-रात उसी की लौ में रमे रहते हैं ?.
”यह सब कहा से ले आया तू ?” पंडित जी ने पूछा ।.
”कहाँ से ? अरे यह उन्हीं बालकों के गहने हैं जिनका पता तुमने मुझे बताया था । यह उसी सांवरिया के गहनेहैं !”
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”तेरी लीला अपरम्पार है गिरधारी !” पंडित जी के मुख से निकला :.
”मैंने जीवन-भर तेरी स्तुति की । रात-रात भर जागकर तेरा गुणगान किया और तूने इस वजमूर्ख पापी चोर को जो अपने कर्मों से सज्जनों को त्रास देता है अपने गहने तक दे डाले ?.
वाह रे छलिया मेरी धूपबत्ती भी तुझे न सुहाई और इस दुष्ट की राहजनी पर प्रसन्न होगया !”
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”अब चलता हूं पंडित जी ! सुबह तक पहुंचना है । उनके गहने वापस करने हैं मुझे तो अब वहीं बसेरा करना है और उन मनोहर बालकों के प्रतिदिन दर्शन करूंगा ।”.
”अच्छा! मुझे तो तेरी बात पर विश्वास नहीं है । क्या तू मुझे उनसे मिला सकता है ?” पंडित जी ने कहा ।.
”क्यों नहीं । चलो मेरे साथ । पर दूर बहुत है पंडित जी ! मार्ग भी बहुत कठिन है । सुबह तक पहुंचना है । कहीं भी रुकना नहीं है ।.
सोच लीजिए परंतु लाला सांवरिया से विनती करके तुम्हें कुछ गहने अवश्य दिलवा दूंगा ।”.
पंडित जी तत्काल उसके साथ चल पड़े । रास्ता बड़ा कठिन था । सकटू तो जाने किस धुन में चला जा रहा था मगर पंडित जी की तो पिंडलियां दुखने लगीथीं ।
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जी चाह रहा था कि वहीं सो जाएं परंतु एक सुअवसर उसे मिलता प्रतीत हो रहा था जिसे वह किसी भी मूल्य पर गवाना नहीं चाहता था ।.
रात्रि-भर की यात्रा के पश्चात भोर का प्रकाश फैला तो सकटू हर्षित स्वर में नाचने लगा ।.
”पंडित जी ! यही है वो स्थान जहां वे दोनों मुझे मिले । अब थोड़ी देर प्रतीक्षा करनी होगी । वे गाएं लेकर आतेहोंगे ।
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आप एक काम कीजिए पेड़ पर चढ़ जाए । नए आदमी को देखकर बच्चे डर सकते हैं ।”.
पंडित जी उस कदम्ब के पेड़ पर चढ़ गए । थोड़ा समय बीता ।.
”पंडित जी ! वो आ गया । उसकी बांसुरी की मधुर धुन सुन रहे हो न ?” सकटू प्रसन्नता से चीखा : ”वह आ रहा है । अब थोड़ी ही देर लगेगी ।”.
”मुझे तो कोई बांसुरी नहीं सुनाई पड़ रही ।” पंडित व्यग्र हो उठा ।.
”वह अभी आया जाता है । आपके कानों में कोई विकार लगता है ।” तब तक भक्तवत्सल भगवान कृष्ण और बलराम उसके समीप आ गए । दोनों ही बड़ी मंद-मंद मुस्कान से हंस रहेथे ।
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”आओ लाला । यह लो अपने गहने । गिन लो । मैंने पंडित जी को एक भी नहीं दिया । पहन लो अपने गहने परतु एक बात बताओ मेरे साथ पंडित आए हैं उन्हें आपकी बांसुरी की आवाज क्यों नहीं सुनाई दी ?”.
करुणानिधि ने मुस्कराकर पेड़ पर छिपे पंडित को देखा । ”पंडित जी नीचे आओ । देख लो सांवरिया को और गहने मांगलो ।”
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पंडित जी नीचे तो उतरे परतु कुछ दिखाई तो दे ही न रहा था !.
”यहां तो कोई नहीं है?” वहबोले ।
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”ऐं आपकी आखों में भी कुछ हो गया ? सामने खड़े बालक नजर नहीं आ रहे ?.
लाला ! ” सकटू भगवान से पूछ बैठा: ”यह क्या रहस्य हैं ! पंडित जी को न सुनाई देता है न दिखाई देता है । यह मुझे झूठा कह रहे हैं ।.
लाला ! ऐसा मत करो । गहने मत देना परंतु पंडित जी को अच्छा कर दो ।”.
”अच्छी बात है ! तुम मुझे और इन्हें एक साथ स्पर्श करो ।” कृष्ण ने कहा ।.
सकटू ने ऐसा ही किया तो पंडित जी के दिव्य चक्षु खुल गए । और वह प्रेम विह्वल होकर प्रभु के चरणों में गिर पड़े ।.
सकटू चोर निरंतर अपने ईष्ट की मोहक छवि निहार रहा था । आस्था और श्रद्धा के साथ लगन हो तो परमपिता परमात्मा व्यक्ति के निश्छल प्रेम के वशीभूत हो जाते हैं । यह सकटू चोर की निष्कपट लगन से सिद्ध हो गया । Posted by Dr. Ajay Mishra at 6:26 AMNo comments:
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Labels: ANOKHI KAHANIYAN FRIDAY, NOVEMBER 22, 2019ANOKHI KAHANIYA 21
भिखारी
वह बहुत दिनों से बेरोजगार था, उसे एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ो सी लग रही थी, बस इसी उठापटक में था कि कहीं नौकरी लग जाए. आज उसका एक इंटरव्यू था, पर था दूसरे शहर में और जाने के लिए उसकी जेब में सिर्फ दस रूपये थे. उसे कम से कम पांच सौ रुपयों की जरूरत थी. अपने एकलौते इन्टरव्यू वाले कपड़े रात में धो, पड़ोसी की प्रेस मांग के, तैयार कर पहन वह अपनी योग्ताओं की मोटी फाइल बगल में दबा दो बिस्कुट खा के निकला, लिफ्ट ले, पैदल जैसे तैसे चिलचिलाती धूप में पसीने से तरबतर वह बस स्टैंड पहुंचा कि शायद कोई पहचान वाला मिल जाए. परन्तु काफी देर खड़े रहने के बाद भी कोई न दिखा. उसके मन में घबराहट और बहुत मायूसी थी, क्या करूंगा...? अब कैसे पहुंचूगा..? दुःखी मन से वह पास के मंदिर पर जा पहुंचा, दर्शन कर सीढ़ियों पर बैठ गया. उसके पास में ही एक फकीर बैठा था, फकीर के कटोरे में उसकी जेब और बैंक एकाउंट से भी ज्यादा पैसे पड़े थे, उसकी नजरे और हालत समझ के वह फकीरबोला
"कुछ मदद कर सकता हूं क्या..?" वह मुस्कुराता बोला कि, "आप क्या मदद करोगे भाई...!! " "चाहो तो मेरे पूरे पैसे रख लो", मुस्कुराता हुआ वह फकीरबोला.
वह तो चौंक गया कि फकीर को कैसे पता चला उसकी जरूरत का, फिर उसने फकीर से कहा "क्यों मदद करना चाहते हो भाई...?" "शायद आप को जरूरत है" फकीर गंभीरता से बोला. "हां है तो पर तुम्हारा क्या तुम तो दिन भर मांग के कमाते हो." उसने फकीर का ही पक्ष रखते हुए बोला. इस पर फकीर हँसते हुए बोला "मैं नहीं मांगता साहब लोग डाल जाते है मेरे कटोरे में पुण्य कमाने के लिए, मैं तो फकीर हूं, मुझे इनका कोई मोह नहीं, मुझे सिर्फ भूख लगती है, वो भी एक टाईम और कुछ दवाईंया बस, मैं तो खुद ये सारे पैसे मंदिर की पेटी में डाल देता हूं." फकीर बहुत सहज था, यह कहतेकहते.
वह हैरान था उसने फकीर से पूछ ही लिया "फिर यहां बैठते क्यों हो.. .?" "आप जैसों की मदद करने" फिर फकीर यह कह कर मंद मंद मुस्कुरा रहा था. वह तो फकीर का मुंह ही देखता रह गया, फकीर ने पांच सौ रुपये उसके हाथ पर रख दिए औरबोला कि
"जब हो तो लौटा देना." वह शुक्रिया जताता, वहां से अपने गंतव्य तक पहुंचा, उसका इंटरव्यू हुआ, और सलैक्शन भी. वह खुशी खुशी वापस आया सोचा उस फकीर को धन्यवाद दूं, मंदिर पहुंचा तो देखा बाहर की सीढ़़ियों पर भीड़ जमा थी, वह घुस कर अंदर पहुंचा और देखा कि वहां तो वही फक;ीर मरा हुआ पड़ा था, उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी, उसने दूसरों से पूछा कि यह सब कैसे हुआ...?? पता चला "वो किसी बीमारी से परेशान था, सिर्फ दवाईयों पर जिन्दा था आज उसके पास दवाईंया नहीं थी और न उन्हैं खरीदने या अस्पताल जाने के पैसे." वह आवाक सा उस मृत फकीर को देख रहा था. इतने में भीड़ में से कोई बोला, "अच्छा हुआ मर गया, ये भिखारी भी साले बोझ होते है, कोई काम के नही। Posted by Dr. Ajay Mishra at 6:44 AMNo comments:
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Labels: ANOKHI KAHANIYAN THURSDAY, NOVEMBER 21, 2019ANOKHI KAHANIYA 20
पाप का गुरु कौन ? ( एक प्रेरणास्पद कथा ) किसी समय काशी शिक्षा की नगरी कही जाती थी । लम्बे समय से यह परम्परा रही है कि प्रत्येक बालक जो ब्राह्मण के घर में जन्म लेता था, उसे काशी जाकर वेदादि शास्त्रों का अध्ययन करना होता था । तभी वह कर्मकाण्ड आदि पुरोहिताई के कार्य करने के योग्य होता था । एक बार की बात है, एक पंडितजी ने अपने बेटे को भी शास्त्रों का अध्ययन के लिए काशी भेजा । सभी शास्त्रों का सांगोपांग अध्ययन करने के बाद बालक अपने गाँव लौटा । अपने शिक्षित बालक के आने की ख़ुशी में पंडितजी ने एक भव्य उत्सव का आयोजन करवाया, जिसमें ज्ञान चर्चा का विषय भी रखा गया । उसमें नये पंडितजी को शास्त्रोक्त तरीके से ग्रामवासियों की समस्याओं का समाधान करना था । सभी लोगों ने तरह - तरह के प्रश्न पूछे - लगभग सभी प्रश्नों के जवाब नये पंडितजी ने शास्त्रीय व्याख्याओं से दिए । गाँव वाले बहुत प्रभावित हो हुए । इतने में एक बूढा किसान सामने आया और उसने पूछा - " पाप का गुरु कौन ?" पंडितजी ने अपने विवेक पर जोर दिया परन्तु इसका उत्तर नहीं मिला । अंत में पंडित जी को लगा कि अभी उनका ज्ञान अधुरा है, वह वही से वापस काशी को रवाना हो गये । काशी जाकर उन्होंने अपने सभी गुरुओं से पूछा लेकिन इस प्रश्न का जवाब उन्हें कहीं से नहीं मिला । हताश और निराश होकर इस बार पंडित जी अपने अंतिम गुरु के पास गये तो उन्होंने कहा - " वत्स !इसका जवाब तुझे एक पापी ही दे सकता है ! पंडित जी की आँखे आशा से चमक उठी । उन्हें लग रहा था कि अब उनको इस प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा । उन्होंने तुरंत पूछा - " ऐसा पापी कौन है और कहाँ मिलेगा ?" गुरुदेव बोले - " मैं तो किसी पापी को नहीं जानता लेकिन एक वैश्या है जिसने सैकड़ों लोगों को पापी बनाया है । वह तुम्हारे इस प्रश्न का जवाब दे सकती है ।" पंडितजी बिना कोई देर किये वैश्या के घर की ओर रवाना हुए । पंडित जी को आता देख वैश्या ने स्वागत में व्यंग करते हुए कहा - ज्ञान के साधक आज अज्ञान की सेवा में कैसे ? पंडित जी ने स्वाभिमानपूर्वक कहा - " हे देवी ! मुझे सेवा की कोई आवश्यकता नहीं, केवल अपने एक प्रश्न का उत्तर चाहिए और उसका उत्तर केवल तुम दे सकती हो इसलिए तुम्हारे पास आना पड़ा ।" मुस्कुराते हुए वैश्या बोली - " पूछिये महाशय ! ऐसा कौनसा प्रश्न है, जिसका जवाब केवल मैं ही दे सकतीहूँ !
पंडितजी बोले - " मैं जानना चाहता हूँ कि पाप का गुरुकौन है ?"
वैश्या ठहाका लगाकर हंसी और फिर गंभीर होकर बोली - " महाशय ! इसके लिए आपको कुछ दिन यहाँ रहना पड़ेगा ।" अब पंडितजी इस प्रश्न के उत्तर में पहले ही काफी भटक चुके थे, इसलिए उन्होंने वैश्या की बात मानकर वहाँ रहना स्वीकार कर लिया । लेकिन पंडित जी बोले - " हे देवी ! मैं यहाँ रह तो लूँगा लेकिन खाना - पानी अपने खुद के हाथ का बनाया ही लूँगा ।" वैश्या बोली - " जी अवश्य !" इस तरह चार दिन बीत गये । प्रतिदिन पंडितजी खाना बनाते और अपनी पेट पूजा करते थे । आखिर परेशान होकर पंडितजी ने वैश्या से पूछ ही लिया – “हे देवी ! मुझे मेरे प्रश्न का जवाब कब मिलेगा ?” वैश्या बोली – “थोड़ा धैर्य धारण कीजिये , महोदय ! बस एक दिन की ओर बात है ।” उसी दिन पंडितजी का खाने पीने का सामान भी खत्म हो गया । वैश्या का ठिकाना गाँव से काफी दूर था । भयंकर गर्मी और चिलचिलाती धुप देखकर पंडितजी ने सोचा शाम को बाजार जाकर सामान लाऊंगा । सुबह से भूखे पंडितजी अपनी पोथियों के पन्ने पलट रहे थे । तभी अचानक वैश्या का आगमन हुआ । वैश्या बोली - " पंडितजी आप अकेले खाना बनाते है कितने परेशान हो जाते है, एक काम कीजिये, कल से नहा - धोकर आपके लिए खाना मैं ही बना दिया करूंगी । इससे मुझे भी आपकी सेवा का कुछ पूण्य मिल जायेगा और भोजन के साथ दक्षिणा में मैं आपको एक सोने की मुहर दूंगी । पहले तो पंडितजी ने आनाकानी की किन्तु मुफ्त का खाना और साथ में सोने की मुहर का विचार कर पंडितजी ने वैश्या का प्रस्ताव मान लिया । उसी दिन शाम को वैश्या ने तरह - तरह के पकवान बनाये और पंडितजी की सेवा में उपस्थित हुई । भोजन का थाल पंडितजी के सामने परोसा गया लेकिन जैसे ही पंडितजी ने खाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, वैश्या ने थाल पीछे खिंच लिया । वैश्या के इस व्यवहार से पंडित जी क्रौधित हो गये और तिलमिलाकर बोले - " ये क्या हास्य है ?" वैश्या ने विनम्रता पूर्वक कहा - " श्रीमान ! यही आपके प्रश्न का उत्तर है ।" पंडित जी - " मैं कुछ समझानहीं ! "
वैश्या ने समझाते हुए कहा " महाशय ! क्या केवल स्नान कर लेने मात्र से कोई पवित्र हो जाता है, क्या मेरी अपवित्रता केवल इतनी ही है जो केवल स्नान करके मिटाई जा सकती है ? नहीं ! लेकिन मुफ्त के भोजन और स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आप अपने वर्षों के नियम को क्षणभर में नष्ट करने के लिए तैयार हो गये । यह " लालच " ही पाप का गुरु है श्रीमान !" पंडितजी को अपना जवाब मिल चूका था । शिक्षा – यदि गहनता से अन्वेषण किया जाये तो सभी विकारों का मूल " लालच " को कहा जा सकता है क्योंकि इस एक विकार से अनेक विकार उत्पन्न होते है ! मनोविकार पांच है --- काम, क्रोध, मद , लोभ एवं मोह ! पवित्र गीता के अनुसार -- वासना , लालच एवं क्रोध नरक के द्वार है ! अतः लालच जैसी तामसिक प्रवृति को त्याग देना चाहिए ! दान एक देविक प्रवृति है उसका वरन करो और अपने प्रारब्ध में ( भाग्य में ) सुख एवं समृद्धि को पोषित करे ! ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुण ,,,,,,,,
सम्राट चंद्रगुप्त ने एक बार चाणक्य से कहा, चाणक्य, काश तुम खूबसूरत होते? चाणक्य ने कहा, 'राजन, इंसान की पहचान उसके गुणों से होती है, रूप से नहीं।' तब चंद्रगुप्त ने पूछा, 'क्या कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हो जहां गुण के सामने रूप छोटा रह गया हो।' तब चाणक्य ने राजा को दो गिलास पानी पीने को दिया। फिर चाणक्य ने कहा, 'पहले गिलास का पानी सोने के घड़े का था और दूसरे गिलास का पानी मिट्टी के घड़े का, आपको कौन सा पानी अच्छालगा।'
चंद्रगुप्त बोले, 'मटकी से भरे गिलास का।' नजदीक ही सम्राट चंद्रगुप्त की पत्नी मौजूद थीं, वह इस उदाहरण से काफी प्रभावित हुई। उन्होंने कहा, 'वो सोने का घड़ा किस काम का जो प्यास न बुझा सके। मटकी भले ही कितनी कुरुप हो, लेकिन प्यास मटकी के पानी से ही बुझती है, यानी रूप नहीं गुण महान होता है।' इसी तरह इंसान अपने रूप के कारण नहीं बल्कि अपने गुणों के कारण पूजा जाता है। रूप तो आज है, कल नहीं लेकिन गुण जब तक जीवन है तब तक जिंदा रहते हैं, और मरने के बाद भी जीवंत रहते हैं। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, आध्यात्मिक जीवन ,,,,,, आत्मा के कल्याण की अनेक साधनायें हैं। सभी का अपना-अपना महत्त्व है और उनके परिणाम भी अलग-अलगहैं।
‘स्वाध्याय’ से ,,,,सन्मार्ग,,,,,, की जानकारी होती है। ‘सत्संग’ से ,,,,,,स्वभाव और संस्कार,,,,, बनते हैं। कथा सुनने से सद्भावनाएँ जाग्रत होती हैं। ‘तीर्थयात्रा’ से ,,,,,,,भावांकुर,,,,,, पुष्ट होतेहैं।
‘कीर्तन’ से ,,,,,,,तन्मयता,,,,,, का अभ्यास होता है। दान-पुण्य से ,,,,,,सुख-सौभाग्यों,,,,,, की वृद्धि होती है। ‘पूजा-अर्चना से ,,,,,,आस्तिकता,,,,,,, बढ़ती है। @इस प्रकार यह सभी साधन ऋषियों ने बहुत सोच-समझकर प्रचलित किये हैं। पर ,,,,,,,,,,,,,,,,‘तप’ (परिश्रम ),,,,,,,,,,,,, का महत्त्व इन सबसे अधिक है। तप की अग्नि में पड़कर ही आत्मा के मल विक्षेप और पाप-ताप जलते हैं। तप के द्वारा ही आत्मा में वह प्रचण्ड बल पैदा होता है, जिसके द्वारा सांसारिक तथा आत्मिक जीवन की समस्याएँ हल होती हैं। तप की सामर्थ्य से ही नाना प्रकार की सूक्ष्म शक्तियाँ और दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसलिए तप साधन को सबसे शक्तिशाली माना गया है। तप के बिना आत्मा में अन्य किसी भी साधन से तेज प्रकाश बल एवं पराक्रम उत्पन्न नहीं होता। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, " जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !" ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, जिस प्रकार मैले दर्पण में सूर्य देव का प्रकाश नहीं पड़ता है उसी प्रकार मलिन अंतःकरण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता है अर्थात मलिन अंतःकरण में शैतान अथवा असुरों का राज होता है ! अतः ऐसा मनुष्य ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनेक दिव्य सिद्धियों एवं निधियों का अधिकारी नहीं बन सकता है ! ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, "जब तक मन में खोट और दिल में पाप है, तब तक बेकार सारे मन्त्र और जाप है !" ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ,,,,सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है , आवश्यकता है ,,,उसे आचरण में उतारने की ... .।, बहुत ही कठिन है डगर पनघटकी।.....।
Posted by Dr. Ajay Mishra at 5:24 AMNo comments:
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